बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

"भारत को कभी FDI, बिदेसी निवेस और बिदेसी कर्ज की जरुरत नही थी आज भी नहीं" ए प्रमाण १९४७ से लेकर अबतक के सरकारी फाइलों के आकड़ो में दर्ज है!
हम इसे किसी भी खुली बहस में सिद्ध कर सकते है, राजीव भाई यही बात देस को बता रहे थे जिसके लिए उन्हें मार दिया गया 
राजीव भाई के विचारो को शब्द देने की कोशिश कर रहा हु, इसे आप अवश्य पढ़े, सही लगे तो राजीव भक्तो तक पहुचाने की कृपा करे 
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1- मुग़ल भारत आये लूटने के लिए ऐ तो आप मानते है ? वो आपको लूटने आये क्युकी आपके पास बहुत कुछ था आप बौधिक, और आर्थिक रूप से दुनिया में सबसे आगे थे, आप उनसे 350 सालो तक लुटे भी और उन्हें अंगीकार भी कर लिया यहाँ तक की उनके अनैतिक सम्प्रदाय को भी जिसका परिणाम है भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान !
2- ठीक ऐसा ही कुछ अंग्रेजो ने भी किया, जब मुगलिया सल्तनत अपनी ऐयासियो और अत्याचारों से उठ रहे बिद्रोह के चलते चरमरा रहा था तो अंग्रेज आ धमके और बड़ी आसानी से मुगलों की बुरी लत का फायदा उठाकर सत्ता पर काबिज हो गये, अंग्रेजो ने भी लगभग 300 सालो तक लूटा लेकिन सांप्रदायिक बिस्तार में उनकी कोई रुची नहीं थी जब तक लूट सके लूटा, क्रान्तिकारियो से लोहा न ले पाने की स्थिती में माहौल बिगड़ता देख दलालों को सशर्त सत्ता देकर भाग लिए, लेकिन अपने पीछे रखैलो, बेस्याओ और कुछ नाजायज औलादों को छोड़ गए जिसका परिणाम है इसाई समुदाय और एंग्लो इंडियन्स लोग !
3- इन 650 सालो के लुटने के बाद भी भारत सम्ब्रिद्ध और सबल बचा रहा तो इसके दो मुख्य कारण थे पहला तो मुग़ल या अंग्रेज पुरे भारत पर अपना साम्राज्य कभी कायम नहीं कर पाए और दूसरा भारत की अपार सम्पदा !
4- अब हम आते है १९४७ के बाद जब भारत तथाकथिक रूप से आजाद हुआ तो अंग्रेजो ने अपने भविष्य के अप्रत्यक्ष लाभ को देखते हुए सत्ता उन्ही के द्वारा तैयार किये कंग्रेस और अपने चाटुकार नेहरु शाश्त्री पटेल गाँधी को दे दिया ख़ैर उस समय ईस्ट इंडिया कम्पनी को तो भारत से निकाल गया जिनका कम्पनी के रूप में कोई वजूद बचा ही नहीं था, वो तो बहुत पहले ही अंग्रेजो के सैन्य संस्थान बन चका था लेकिन लगभग १५० बिदेसी कम्पनिया जो भारत को लूटने में लगी थी उन्हें नहीं निकाला गया ये भी भारतीय दलालों और अंग्रेजो के बिच अनौपचारिक समझौते के कारण हुआ !
5- आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सभी बिदेसी कम्पनिया भारत में एसा कोई काम नही करती थी जिसके चले जाने से भारत पर कोई आर्थिक असर होता, उस समय 50% बिदेसी कम्पनिया तो ट्रेडिंग का काम करती थी मतलब दलाली का, दुसरे देसों से गैर जरूरी चीजे खरीदकर भारत में बेचती थी, 50% बिदेसी कम्पनिया भारत में गैर जरूरी चीजो का उत्पादन करती थी जैसे सिगरेट, सराब, अफीम, चाय, चीनी, बिस्किट, नील, जूते इत्यादि जिनके बंद होने से भारत पर कोई असर नहीं होता जिसे तत्कालीन अर्थशाश्त्रियो ने भी माना था और आप भी आसानी से समझ सकते है !
6- उस समय नेहरु और उनके मंत्रियो ने भी बिकास को मुद्दा बनाकर बिदेसी कम्पनियो की आवश्यकता को अनिवार्य कर दिया, देस को गुमराह किया, देश को धोका दिया लेकिन आम आदमी उनके झूठ का अफीम खाकर नकली आजादी के नसे में चूर होकर उन्ही दलालों के साथ खड़ी हो गई, ऐसी बात नहीं की बिदेसी कम्पनियो के बिरोध में स्वर नहीं उठे, उठे थे लेकिन उन्हें मुर्ख पागल कह कर उनको दबा दिया गया, परिणाम आपके सामने है !
7- बिदेसी निवेस के नाम पर भारत में बिदेसी कम्पनियो का सिलसिला सुरु हो गया, बिदेसी निवेस एक असत्य और छलावा है इस बात को आप इस तरह समझ सकते है:-
क- १९४७ के बाद भी जितनी बिदेसी कम्पनिया भारत में आई वो सभी ज्यादातर ट्रेडिंग में आई या फिर ०% तकनीकी के उत्पादन के छेत्र में आई जिनकी भारत को कोई जरुरत नहीं थी!
ख- बिदेसी कम्पनियो ने निवेस के नाम पर यदि एक करोड़ की लागत से उत्पादन की इकाई लगाई तो दो साल के अंदर उत्पादन सुरु होने से पहले ही शेयर मार्किट में शेयर बेचकर तिन करोड़ यानि अपनी लागत से तीन गुना ज्यादा अपने देस वापस भेज दिया बाद में हमारे पैसे से ही हमको अब तक लूट रहे है, अर्थात बिदेसी निवेस की बात सिरे से असत्य है !
ग- बिदेसी कम्पनिया भारत में ०% तकनीकी खासकर FMCG और मजदूर बिहीन उत्पादन के छेत्र में आती है, जिनमे कम से कम मजदूर लगे जो आटोमेटिक मसीनो से अधिक से अधिक उत्पादन कर सके जिन्हें मात्र प्रचार माध्यमो से बेचा जा सके, अर्थात रोजगार देने वाली बात भी असत्य है !
घ- मात्र ५% कम्पनिया जो मध्यम तकनीकी (हाई टेक्नोलॉजी नही) के छेत्र में आती भी है वो यहाँ उत्पादन नहीं असेम्बलिग़ करती है जिससे कोई खास फायदा देस को नहीं होता और लाभ उनके देस को होता है, 
च-ज्यादातर बिदेसी कम्पनिया मोरिसस जैसे देसों के जरिये भारत में घुसती है जिसके कारण भारत को टेक्स का फायदा भी नहीं मिल पाता क्युकी उनसे कर मुक्त ब्यापार का समझौता है, यु भी इस समझौते का कोई औचित्य नहीं है क्युकी भारतीय उद्योगपतियो का ब्यापार इन देसों में न के बराबर है !
छ- भारत का दुर्भाग्य देखिये की समय समय पर हो रहे बिरोधो के बावजूद बिदेसी निवेस के नाम पर FDI को सर्वमान्य १००% कर दिया गया और इसे ऐसे लोग कर रहे है जो पूर्व में इसके बिरोधी रहे है, जो खुद को राष्ट्रवादी कहते है, जो देस की सबसे राष्ट्रवादी पार्टी खुद को बताते है !
8- भारत को कभी कर्ज की जरुरत नहीं रही है, आज भारत पर १८० बिलियन डोलर कर्ज है आज डोलर के मुकाबले रूपये की कीमत ६६ रूपये हो गई है, यानी लगभग 13 लाख करोड़ रूपये का कर्ज भारत पर है जबकि भारत का कालाधन देस और बिदेस में मिलाकर कर्ज से ३० गुने से भी ज्यादा ३४५ करोड़ रूपये से भी उपर है, अब सोचिये भारत को कर्ज की जरुरत कहा थी भारत अगर ईमानदारी से अपना खुद का धन लगाकर बिकास करता तो आज से ३० साल पहले बिकसित हो चूका होता दुनिया की महाशक्ति बन चूका होता, अर्थात भारत को कर्ज की नहीं इमानदार, ताकतवर राष्ट्रवादी नेता की जरुरत है कर्ज की नहीं !
9- आकड़ो के अनुसार भारत एक तरफ हर पञ्च वर्षीय योजनाओ के लिए 1 लाख 50 हजार करोड़ का कर्ज लिया है और इसका ३० गुना यानि 45 लाख करोड़ चोर चुरा कर बिदेस भेज देता था तो कर्ज fdi या बिदेसी निवेस की क्या जरुरत थी, आप जानते है की अबसे पहले की सरकारे चोर भ्रष्ट और लुटेरी थी, तो अब तो मोदी जी जैसे राष्ट्रवादी के समय में भी वो नीतिया जारी है या यु कहे की पूर्व सरकारों से 10 गुना तेजी से जारी है !
10- होना तो चाहिए था कि, काले धन को राष्ट्रिय संपत्ति घोषित करने का अध्यादेस मोदी लाते, तो देस को कम से कम २०० लाख करोड़ रुपया तो तत्काल मिल गया होता !
11- होना तो चाहिए था कि, १००० और ५०० रूपये के नोट को तत्काल प्रभाव से 1 महीने की बिनिमय अवधि और टेक्स पर छुट देकर बंद कर देते तो ३५ लाख करोड़ रूपये जो जमीन में बिस्तर में तकिये में छुपकर रखे है वो बाहर आ जाता तो भी भारत कर्जमुक्त हो जाता !
12- होना तो चाहिए था कि, बिदेसो में जमा कलाधन तो बाद में अपने देस का कालाधन जमीन सोना और प्रतिभूति और कई अन्य माध्यमो में लोगो ने ७० लाख करोड़ दबा रखा है, उसे ही निकलवा लेते तो भी भारत कर्ज मुक्त और बिकसित बन जाता है !
नोट- बिकास का एक मात्र रास्ता है स्वदेसी स्वावलंबी, स्वभाषी भारत का निर्माण
शम्पूर्ण आजादी, विकेन्द्रित विकासवाद, अध्यात्मिक समाजवाद के लिए समग्र क्रांति ही हमारा लक्छ्य है,