शनिवार, 4 मई 2013

भारतीय संष्कृति , संस्कारो एवं उच्च आध्यात्मिक मूल्यो पर आधारित वेदिक शिक्षा पद्धति ही एक मात्र समाधान है। चरित्र निर्माण का, दुराचार व भ्रश्ट्राचार मुक्त भारत बनाने का ।

भारतीय संष्कृति , संस्कारो एवं उच्च आध्यात्मिक मूल्यो पर आधारित वेदिक शिक्षा पद्धति ही एक मात्र समाधान है। चरित्र निर्माण का, दुराचार व भ्रश्ट्राचार मुक्त भारत बनाने का ।

200 करोड़ वर्ष पुरानी भारत की आध्यात्मिक संस्कृति पर कैसे भरी पड़ रहे है । यूरोप व पश्चिम की भोगवादी व भोतिक़वादी अपसंस्कृति के 200 वर्ष ।.....

पश्चिमी अपसंस्कृति का प्रायोजित तरीके से कैसे दुसप्रचार किया जा रहा है। इसके लिए श्र्रद्देय स्वामी जी ने निस्कृर्ष के रूप मैं कुछ बिन्दु तय किए है । हम आपको मूल बिन्दु तथा उनका विस्तार भी साथ मैं सम्प्रेसित कर रहे है 01 . è असंयम का प्रोत्साहन ,

02 . è उपभोकत्तावाद व भोतिकवाद का महिमामंडन ,

03 . è अनैतिक यौन संबंधो का महिमामंडन ,

04 . è पश्चिम का महिमामंडन ,

05 . è भारत की महानता का अनादर ,

06 . è नास्तिकता का प्रचार ,

07 . è झूठी धर्मनिरपेक्षता का प्रचार ,

08 . è अवैज्ञानिक विकासवाद ,

09 . è समानता के स्थान पर सहिष्णुता ,

10 . è शौषन पर आधारित न्याय व्यवशथा ,

11 . è अहिंसा व शांति के नाम पर हिंसा व युद्ध की प्रथिस्ठा , ।



è……

एक अरब छियानवे करोड़ , आंठ लांख तिरपन हजार एक सो चोदह वर्ष पुरानी भारत की वैदिक संष्कृति , सभ्यता व ऋषि परंम्प्ररा वाले देश के अधिकांश आधुनिक युवाओ के माइंड सेट , उनकी सामाजिक ,साँस्क्रतिक , आर्थिक व राजनेतिक सोच मे पश्चिम के आदर्शो , सिद्धांतों व विचारधाराओ को कैसे डाला जा रहा है ।

कैसे भारत को सामाजिक ,धार्मिक , सांष्कृतिक एवं आर्थिक रूप से गुलाम बनाया जा रहा है।

इस संदर्भ मे बहुत विचार मंथन व चिंतन करके हम कुछ निष्कर्ष पर पहुँचे हे। हम आपसे यह विचार इसलिए साझा कर रहे है । जिससे की हम सब मिलकर इस पूरे चक्रविहु को तोड़ सके एवं एक आध्यात्मिक व आर्थिक शक्ति संपन्न परम वैभवशाली भारत का निर्माण कर सके।

1 è ॰ असंयम का प्रोत्साहन:è हमारे बच्चो के कोमल दिल-दिमाग मे बचपन से ही स्कूल से लेकर विश्वविधालय तक एक भोगवादी विचार को बहुत ही चतुराई से डाला जाता है की जीवन मैं सब टेस्ट एक बार जरूर लेकर देखने चाहिए, चाहे वह नशा, वासना, मांसाहार या अन्य कोई भी उपभोक्तावादी तामसिक वाणी , व्यवहार ,आहार , काला व न्रत्य आदि ।

जबकि हमारे पूर्वज ऋषि-ऋषिकाओ , वीर-वीरांगनाओ का निर्र्वादित रूप से यह मानना है को पाप, अनाचार , दुराचार , नशा, मांसाहार , अशलील , अनैतिक एवं अधार्मिक कार्य को एक बार भी नहीं करना चाहिए । एक छन के लिए भी हमारे मानव जीवन मे अशुभ ,अज्ञान , अनाचार , व अपवित्रता को स्थान नहीं देना चाहिए । क्योकि जो एक बार आचरण से पतित हो जाता है । हिंसा , झूठ , दुर्व्यसन , बेईमानी व दुराचार आदि मैं फंस जाता है उसका वापस लोटकर आना मुश्किल काम है । कई बार तो असंभव ही हो जाता है । ओर जीवन बर्बाद हो जाता है । एक क्षण के लिए भी हमारे मानव जीवन मैं अशुभ , अज्ञान , अनाचार व अपवित्रता को स्थान नहीं देना चाहिए । क्या हम साइनाइड का एक भी बार टेस्ट लेकर देखेंगे ?. क्या हम बिजली के करंट या आग मैं हाथ डालकर देखेंगे ?.

2 è.॰ उपभोकतवाद व भोतिकवाद का महिमामंडन :è आधुनिक युवाओ के मन मैं प्रचार माध्यमों का दुरुपयोग करके एक उपभोक्तावादी , भोगवादी एवं भोतीकवादी विचार को मन मैं गहरा बैठा दिया । खूब कमाओ , खूब खाओ व भोगो । हमे योगी से भोगी व रोगी तथा उपासक से उपभोक्ता बना दीया ।

हमारे यहाँ जीवन का आदर्श था क्या इसके बिना भी मेरा गुजारा हो सकता है ? तथा पूर्ण विवेक व भाव के साथ पुरुषार्थ करते हुए न्यायपूर्ण तरीके से जो कुछ भी ऐश्वर्य मुझे मिलता है । उसमे से मैरे तथा मेरे परिवार आदि के लिए जो नितांत आवश्यक उसे अपने लिए रखकर शेष सब सेवा मैं समर्पित करने की हमारी तप , त्याग, दान व सेवा की पावनी परम्परा रही है । त्यागवाद , अध्यात्मवाद व टूस्टीशिप की परम्परा अर्थात सब कुछ भगवान का है । भद्रमिच्छंत ऋषय: स्वविर्द: तपोदिक्षमुद निषेदु रग्रे। ततो राष्ट्र बलमोजशचजातं तदस्मै देवा उप संनन्मंतु ।

इशावास्यमिदअसर्व यक्तिज्ञ्च जगत्या जगतम ।

तेन त्यक्तेन भुज्जीथा माँ ग्रध: कस्य सिव्द्ध्नम ।।- यजु 40/1

इस ऊंची व आदर्श परम्परा के स्थान पर चारो ओर भोगवाद व बाजारवाद का तृष्णाभरा दूषित जहरीला वातावरण बना दिया ओर अंतहिन विनाश के रास्ते पर मनुष्य को बड़ा कर दिया ।

3 è: अनैतिक यौन सम्बन्धो का महिमामंडन : वासना { सेक्स } को प्लेजर की तरह महिमा मंडित करके तथा संयमित यौन सम्बन्धो व परिवार व संस्कारो की वेज्ञानिक परम्परा के स्थान पर पश्चिम अनेतिक व उन्मुक्त यौन सम्बन्धो को महिमामंडित करके उसे एक अलोकिक सुख का दर्जा दे रहा है । तथा परिवार , संस्कार व सम्बन्धो की दिव्यता से अनभिज्ञ होने के कारण एक असभ्यतापूर्ण पाशविक जंगली अपसंस्कृति का शिकार हो रहा है ।

4. पष्चिम का महिमामंडन- जो कुछ भी अच्छा है वह पष्चिम से आया है चाहे वह साइंस एण्ड टैक्नोलाजी है अथवा कलचर सिविलाइजेषन, डवलपमेंट रिसर्च एवं इन्वेंषन हो। जबकि हकीकत यह है कि 500 साल पहले अमेरिका का कोई नाम तक नहीं जानता था, 2000 वर्ष पहले यूरोप की कोई संस्कृति नहीं थी। इसी प्रकार 1400 साल पहले इस्लाम का कोई पता न था, तब से हमारी संस्कृति है। दुर्भाग्य से आविष्कारों,इतिहास व विकास के नाम पर दुनिया में सबसे अधिक झूठ बोला गया और हिन्दुतान के लोगों के मनों में अपने प्रति घृणा तथा हर बात में पष्चिम के प्रति एक आदर्ष, आदर व आकर्षण का भाव भरा गया है।
5. भारत की महानता का अनादर:-भारत के अधिकांष नेताओं ने अंग्रेजों के साथ मिलकर देष में सबसे बड़ा पाप यह किया कि विष्व के सबसे अधिक धनवान, प्रज्ञावान, बलवान व महान राष्ट्र को गरीब बता-बता कर लूटते रहे तथा आज भी यह लूट व झूठ निरन्तर जारी है। लूटेरे, दरिद्र, भूखे-नंगे ब्रिटेन को ग्रेट बना कर हमारे सामने रखा गया तथा आज भी यह लूट निरन्तर जारी है। लूटेरे, दरिद्र, भूखे-नंगे ब्रिटेन को ग्रेट बना कर हमारे सामने रखा गया।
6. नास्तिकता का प्रचार- जो आंखों से नहीं दिखता उसका अस्तित्व नहीं होता। आत्मा-परमात्मा आखों से नहीं दिखता, इसलिए दोनों दिव्य शाष्वत तत्वों को नकार करके समाज को आत्मविमुख व नास्तिक बना दिया। हमारी संस्कृति में हमें सिखाया जाता है कि भाई जो दिखता वह तो क्षणिक सत्य है।
नित्य, शाष्वत, अखण्ड सत्य कभी भी आंखें से नहीं दिखता वही अन्तिम सत्य है तथा सम्पूर्ण दृष्य जगत् भी एक अदृष्य शक्ति से ही उत्पन्न हुआ है। सारा आकार उस निराकार ने ही गढ़ा है। विज्ञान में भी तो हाइड्रोजन व आक्सिजन दो अदृष्य तत्वों से ही तो दृष्य जल तत्व बना है। इसी प्रकार रस, गंध, शब्द व स्पर्षगत सत्य आॅंखों से कहाॅं दिखता है?
7. झूठी धर्मनिरपेक्षता का प्रचार- धर्म निरपेक्षता का झूठा नारा देकर पूरे देष का धर्मविमुख बना दिया। आज पढ़े-लिखे नादान लोग खुद को सैक्युलर कहने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। भारतीय ऋषियों ने भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति व समृद्धि को धर्म कहा है, हमारे ऋषि मुनियों ने जीवन मूल्यों, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, संयम, सदाचार एवं अपरिग्रह आदि को अर्थात वैयक्तिक व सार्वजनिक जीवन के ऊूंचे मूल्यों व आदर्ष को ही धर्म माना है। कोई कर्मकाण्ड आदि की क्रिया मात्र को धर्म नहीं माना है और हमारे धर्मग्रन्थों, वेदों, दर्षन, स्मृतियों व अन्य आर्य ग्रन्थों में सृष्टि का सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान सन्निहित है जबकि पष्चिम में ऐसा नहीं होने से धर्म के बारे में वहाॅं बहुत ही भ्रमपूर्ण विचारधारा है।
8. अवैज्ञानिक विकासवाद- पष्चिम के तथाकथित आधुनिक वैज्ञानिक मुनष्य कर उत्प को एक दुर्घटना या प्राकृतिक संयोग मानते हैं विज्ञान व विकासवाद के तथाकथित सिद्धान्तों के आधार पर मनुष्य के पूर्वज अमीबा व बन्दर मानते हैं जबकि आज भी अमीबा है वह अमीबा, बन्दर तथा बन्दर विकसित होेकर आदमी नहीं बन रहा है। वे मनुष्य को एक सामाजिक जानवर कहते हैं। जबकि हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने मनुष्य को भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना, अमृत पुत्र तथा धरती पुत्र कहा है। हम मात्र पांच तत्वों के संघात व उसमें आकस्मिक मस्तिष्क की उत्पŸिा को नहीं मानते तथा मनुष्य के जीवन का अन्तिम लक्ष्य सभी अपूर्णताओं से मुक्त होकर अमिमानवत्वयुक्त दिव्य जीवन या जीवन मुक्ति को मानते हैं।
9. समानता के स्थान पर सहिष्णुता- समानता, बराबरी के स्थान पर भारतवासियों को सहिष्णुता की बात करके भारत को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से खूब लूटा, दबाया व गुलाम बनाया और हमें कहते रहे सहिष्णु बनो, हम जो भी अत्याचार कर रहे हैं उसे सहन करो, अपने लिए समान रूप से न्याय व स्वाभिमान की बात मत करो। इसी नीति के तहत हमारे देष, धर्म, संस्कृति को विदेषियों ने कभी भी बराबरी या समानता का हक नहीं दिया।
10. शोषण पर आधारित न्याय व्यवस्था - ताकत व शोषण पर आधारित न्याय व विकास का ऐसा कुचक्र चलाया तथा ऐसे कानून बनाए जिससे पूरे विष्व में राजनैतिक लोगों के द्वारा स्ािापित कानून व्यवस्था के स्थान पर सत्य व न्याय पर आधारित सभी कानून, नीतियां व व्यवस्थाएं होनी चाहिए।
11. अहिंसा व शान्ति के नाम पर हिंसा व युद्ध की प्रतिष्ठा- अहिंसा व शान्ति के सार्वभौमिक व सर्वकालिक नियमों के स्थान पर पष्चिम ने पक्षपात पूर्ण अहिंसा के झूठे नारे दियंे हैं कि केवल इन्सान को छोड़ कर शेष किसी भी जीव गाय, भैंस, भेड़-बकरियां और मुर्गे व मछली आदि खाने तथा मनमाने ढंग से युद्धों व अन्य आर्थिक व सामाजिक संघर्षो में दुनियां को धकेलकर अनगिनत अक्षम्य पाप व अपराध पष्चिम ने किए हैं। निष्कर्ष के रूप में सभी भारतीयांे का अपने गौरवषाली आध्यात्मिक ऋषि परम्परां पर गर्व होना चाहिए और पष्चिम अवैज्ञानिक दोषपूर्ण अपसंस्कृति से मुक्त राष्ट्र व विष्व के निर्माण के लिए सबको संकलित व संगठित होकर काम करना चाहिए।

शम्पूर्ण आजादी, विकेन्द्रित विकासवाद, अध्यात्मिक समाजवाद के लिए समग्र क्रांति ही हमारा लक्छ्य है,